मासूम की तलाश | moral story in hindi | hindi kahani | Maasoom ki talaash


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रमेश एक गरीब आदमी था, लेकिन उसका दिल सोने का था। अपनी पत्नी और दो प्यारे बच्चों के साथ, उसकी छोटी सी दुनिया खुशियों से भरी थी। उनके बेटे का नाम राजू था, एक चंचल और जिज्ञासु बालक, जिसकी आँखें हमेशा नई चीजों को जानने के लिए चमकती रहती थीं। बेटी, रोशनी, अपनी नाम की तरह ही परिवार में उजाला बिखेरती थी, अपनी मीठी मुस्कान और प्यारी बातों से सबका मन मोह लेती थी।

गाँव में सीमित अवसरों के कारण, रमेश ने अपने परिवार का पेट पालने के लिए मुंबई जाने का फैसला किया। सपनों की नगरी में उन्हें उम्मीद थी कि वे बेहतर जीवन जी सकेंगे।

 अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ, रमेश एक सुबह ट्रेन में सवार होकर मुंबई के लिए रवाना हो गया। उनके छोटे से सामान में उनकी उम्मीदें और भविष्य के सपने बंधे हुए थे।

मुंबई का रेलवे स्टेशन एक अलग ही दुनिया थी। लोगों की भीड़, शोरगुल और भागदौड़ ने रमेश और उसके परिवार को थोड़ा डरा दिया। वे सब एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे, अनजान शहर की आपाधापी में खो जाने के डर से। जैसे ही वे ट्रेन से उतरे, भीड़ और भी बढ़ गई। इसी अफरा-तफरी में, एक पल की असावधानी में, राजू का हाथ रमेश की पत्नी से छूट गया।


जब तक उन्हें इसका एहसास हुआ, राजू भीड़ में कहीं गुम हो गया था। रमेश और उसकी पत्नी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होंने तुरंत राजू को पुकारना शुरू कर दिया, उसकी छोटी सी आवाज को भीड़ के शोर में दबा दिया गया। हर तरफ निराशा और डर का माहौल था। उन्होंने हर चेहरे को ध्यान से देखा, हर बच्चे को राजू समझकर दौड़े, लेकिन उनका लाडला कहीं नहीं मिला।

उनकी आँखों में आँसू थे और दिल में बेबसी। एक अनजान शहर में, इतनी बड़ी भीड़ में उनका छोटा सा बच्चा कहाँ चला गया होगा? क्या वह ठीक होगा? क्या उसे भूख-प्यास लगी होगी? इन सवालों ने उन्हें अंदर ही अंदर तोड़ दिया।

एक भले रिक्शावाले ने उनकी हालत देखकर उनसे पूछा कि क्या हुआ है। जब रमेश ने अपनी परेशानी बताई, तो रिक्शावाले ने उन्हें पुलिस स्टेशन चलने की सलाह दी। वह खुद उन्हें पुलिस स्टेशन ले गया और उनकी रिपोर्ट लिखवाने में मदद की।

पुलिस ने रमेश की व्यथा को गंभीरता से लिया। एक मासूम बच्चे का खो जाना एक गंभीर मामला था। तुरंत चार अलग-अलग टीमें बनाई गईं और राजू की तलाश शुरू कर दी गई। पुलिस ने रेलवे स्टेशन और उसके आसपास के इलाकों के सीसीटीवी फुटेज खंगाले, लेकिन राजू का कोई सुराग नहीं मिला।

दो दिन बीत गए, और राजू का कोई पता नहीं चला। रमेश का दुख बढ़ता ही जा रहा था। उसकी पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था। दोनों चुपचाप बैठे रहते, बस अपने प्यारे बेटे की यादों में खोए रहते और आपस में धीमी आवाज में उसकी बातें करते। राजू की हँसी, उसकी शरारतें, उसकी मासूमियत - हर चीज उन्हें और भी तकलीफ देती थी।

उधर, राजू भूख और प्यास से तड़प रहा था। वह डरा हुआ और अकेला था। स्टेशन की भीड़ में खो जाने के बाद, वह इधर-उधर भटकता रहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कहाँ जाए और किससे मदद माँगे। दो दिन से उसने कुछ नहीं खाया था। उसकी छोटी सी जान भूख और कमजोरी से बेहाल हो रही थी।

तभी पुलिस को एक दुकान का सीसीटीवी फुटेज मिला। उसमें एक छोटा सा बच्चा, हूबहू राजू जैसा, दुकान के बाहर गिरा हुआ झूठा खाना खा रहा था। यह देखकर पुलिस का दिल भर आया। उन्हें उम्मीद की एक किरण दिखाई दी।

पुलिस तुरंत उस इलाके में पैदल ही सर्च अभियान चलाने लगी। हर गली, हर कोने, हर झोपड़ी को ध्यान से देखा जा रहा था। उनकी मेहनत रंग लाई। एक सुनसान जगह पर, एक पुरानी और टूटी-फूटी रिक्शा में उन्हें राजू मिला। वह डरा-सहमा एक कोने में दुबका हुआ था, कमजोर और बेहाल।

पुलिसकर्मियों ने तुरंत राजू को उठाया। उन्होंने उसे प्यार से सहलाया और ढाँढस बंधाया। उसे नए कपड़े दिए गए और भरपेट खाना खिलाया गया। दो दिनों की भूख के बाद, राजू ने पेट भरकर खाना खाया और थोड़ा शांत हुआ।

जब राजू थोड़ा सहज हुआ, तो एक पुलिसकर्मी ने उससे पूछा कि वह बड़ा होकर क्या बनना चाहता है। राजू ने अपनी मासूम आँखों में एक चमक के साथ कहा, "बड़ा होकर मैं भी पुलिस बनूँगा और दूसरों की मदद करूँगा, जैसे आपने मेरी की।"

पुलिस ने तुरंत रमेश और उसकी पत्नी को खबर दी। अपने बेटे के मिलने की खबर सुनकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वे तुरंत पुलिस स्टेशन भागे। जैसे ही राजू ने अपने माँ-बाप को देखा, वह दौड़कर उनसे लिपट गया। रमेश और उसकी पत्नी ने उसे कसकर गले लगाया, उनकी आँखों से खुशी के आँसू बह रहे थे।

वह पल अविस्मरणीय था। दुख और निराशा के बादल छँट गए थे और खुशियों की धूप खिल उठी थी। राजू अब सुरक्षित था, अपने परिवार के पास था।
कहानी का अंत सुखद हुआ। रमेश और उसका परिवार राजू को पाकर बेहद खुश थे। उन्होंने पुलिसकर्मियों का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया, जिनकी तत्परता और मानवीयता ने उनके बच्चे को वापस दिलाया था।

कहानी की सीख:

यह कहानी हमें कई महत्वपूर्ण सीख देती है:

  दूसरों की मदद करना: रिक्शावाले और पुलिसकर्मियों ने रमेश और उसके परिवार की निस्वार्थ भाव से मदद की। उनकी सहायता के बिना, राजू को खोजना बहुत मुश्किल होता। हमें भी हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।
 
  मानवीयता: पुलिसकर्मियों ने न केवल अपनी ड्यूटी निभाई, बल्कि एक बच्चे के दर्द को समझा और उसे सहारा दिया। उनका मानवीय दृष्टिकोण सराहनीय है।

  आशा का दामन न छोड़ें: जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, हमें हमेशा उम्मीद बनाए रखनी चाहिए। निराशा हमें कमजोर करती है, जबकि आशा हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

  बच्चों का ध्यान रखें: यह कहानी हमें बच्चों की सुरक्षा के प्रति अधिक जागरूक रहने की सीख देती है। भीड़भाड़ वाली जगहों पर बच्चों का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि वे खो न जाएं।
 
  संवेदनशील बनें: हमें दूसरों के दुख-दर्द को समझना चाहिए और उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए। रमेश और उसके परिवार की पीड़ा को समझकर रिक्शावाले और पुलिसकर्मियों ने जो सहायता की, वह एक मिसाल है।



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