बचपन की यारी, धोखे की बीमारी
एक छोटे से गाँव में, जहाँ खेत खलिहान और हरे-भरे पेड़ फैले हुए थे, दो दोस्त बचपन से साथ-साथ बड़े हुए। मगन और छगन, दोनों की राहें एक साथ चली थीं, चाहे वह स्कूल के रास्ते हों या गाँव के मेले।
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मगन के पिता गाँव के बड़े जमींदार थे, इसलिए उसके पास कभी धन की कमी नहीं रही। दूसरी ओर, छगन एक साधारण किसान परिवार से था और अक्सर उसे आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था।
उनकी दोस्ती अटूट थी, समय के साथ और भी गहरी होती चली गई। मगन अपनी समृद्धि के बावजूद कभी घमंडी नहीं हुआ और छगन ने कभी अपनी गरीबी को उनकी दोस्ती के बीच नहीं आने दिया। दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख में हमेशा साथ खड़े रहते थे।
एक दिन, जब गाँव में विकास की लहर आ रही थी और निर्माण कार्य बढ़ रहे थे, मगन और छगन ने मिलकर ईंट की भट्टी का व्यवसाय शुरू करने का विचार किया।
छगन को यह विचार बहुत पसंद आया क्योंकि उसे उम्मीद थी कि इससे उसकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। मगन के पास पर्याप्त धन था, इसलिए छगन को लगा कि साझेदारी में काम करना फायदेमंद होगा।
व्यवसाय शुरू करने की योजना बनने लगी। ईंट बनाने के लिए भट्टी लगानी थी, मजदूर रखने थे और कच्चा माल खरीदना था। छगन के पास इतना पैसा नहीं था, इसलिए उसने बैंक से पाँच लाख रुपये का कर्ज लिया।
उसे उम्मीद थी कि व्यवसाय अच्छा चलेगा और वह धीरे-धीरे अपना कर्ज चुका देगा।
जब व्यवसाय शुरू करने का समय आया, तो मगन का असली रूप सामने आने लगा। वह हद दर्जे का कंजूस निकला। हर छोटे-बड़े खर्च में वह आनाकानी करने लगा।
जब मजदूरों को दिहाड़ी देने की बात आती, तो वह तरह-तरह के बहाने बनाता। कभी कहता कि काम ठीक से नहीं हुआ, तो कभी कहता कि अभी उसके पास पैसे नहीं हैं।
ईंट बनाने के लिए जरूरी सामान जैसे मिट्टी, कोयला और अन्य सामग्री खरीदने का पूरा खर्च छगन ने ही उठाया। मगन ने एक रुपया भी खर्च नहीं किया।
जब छगन उससे पैसों की बात करता, तो वह झूठ बोलता कि उसके पास अभी कोई बड़ा भुगतान आया नहीं है या उसके पैसे कहीं फँसे हुए हैं।
छगन धीरे-धीरे कर्ज के बोझ तले दबने लगा। उसने जो पाँच लाख का कर्ज लिया था, वह तो लगभग खत्म हो चुका था और व्यवसाय अभी ठीक से शुरू भी नहीं हो पाया था। मगन का रवैया देखकर छगन बहुत परेशान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसका बचपन का दोस्त इतना बदल कैसे गया।
जैसे-जैसे व्यवसाय में घाटा होने लगा, मगन और भी ज्यादा उदासीन हो गया। उसने छगन से मिलना-जुलना और बात करना लगभग बंद कर दिया। जब छगन उससे अपने पैसों और व्यवसाय की हालत के बारे में बात करने की कोशिश करता, तो वह उसे टाल देता या फिर कोई झूठी कहानी सुना देता।
छगन अकेला पड़ गया था। एक तरफ कर्ज का बोझ और दूसरी तरफ अपने सबसे अच्छे दोस्त का धोखे भरा व्यवहार, उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। मगन की कंजूसी और धोखेबाजी की वजह से छगन और भी गहरे कर्ज में डूब गया। उसकी सारी उम्मीदें टूट चुकी थीं।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दोस्ती का रिश्ता बहुत अनमोल होता है, लेकिन जब लालच और स्वार्थ उसमें घुस जाते हैं, तो यह टूट भी सकता है।
हमें हमेशा सोच-समझकर लोगों पर भरोसा करना चाहिए और खासकर व्यापार जैसे मामलों में पारदर्शिता और ईमानदारी बहुत जरूरी है।
कंजूसी और धोखेबाजी न केवल रिश्तों को खराब करती है, बल्कि व्यक्ति को नैतिक रूप से भी कमजोर बनाती है।
छगन ने अपने दोस्त पर अंधविश्वास किया और उसकी कंजूसी का शिकार हो गया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि व्यवहार में सच्चा और ईमानदार होना ही जीवन में सफलता और सम्मान दिलाता है।
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