जेबखर्च की प्रेरणादायक कहानी(गरीब परिवार की संघर्ष और नन्हे सपनों की कहानी)


 जेबखर्च की प्रेरणादायक कहानी

कहानी का परिचय (Introduction)

गरीब बच्चों का जीवन कठिनाइयों से भरा होता है, लेकिन एक छोटा-सा "जेबखर्च" भी उनके चेहरे पर बड़ी मुस्कान ला सकता है।
 यह कहानी एक छोटे गाँव के परिवार की है, जिसमें माँ-बाप अपने बच्चों को खुशियाँ देने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। यह एक ऐसी दिल छू लेने वाली हिंदी प्रेरणादायक कहानी है जो आपको भावुक कर देगी और यह सिखाएगी कि छोटी-छोटी चीज़ें कैसे बड़े अर्थ रखती हैं।


पात्रों का परिचय


रामदीन – एक गरीब दिहाड़ी मजदूर
राधा – उसकी पत्नी, एक मेहनती गृहिणी
मोहन – 10 साल का बेटा
सीता – 8 साल की बेटी
राजू – सबसे छोटा बेटा

🌾 जीवन की सच्चाई: संघर्ष भरे दिन

एक छोटे से गाँव में, एक गरीब परिवार रहता था। यह कहानी है रामदीन और उसकी पत्नी राधा की, और उनके तीन बच्चों की – सबसे बड़ा बेटा मोहन, बेटी सीता, और सबसे छोटा राजू। रामदीन दिहाड़ी मजदूर था और जो कमाता, उससे बस दो वक्त की रोटी ही चल पाती थी। ख्वाब देखना तो दूर, उन्हें हर दिन की चिंता सताती रहती थी।

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मोहन, जिसकी उम्र करीब दस साल थी, अपनी माँ के साथ खेतों में काम करने चला जाता था। नन्हें हाथों से वह पत्थरों को हटाता, खरपतवार निकालता, और दिन ढलते-ढलते थककर चूर हो जाता। सीता, जो आठ साल की थी, घर के काम में अपनी माँ का हाथ बटाती और राजू, अभी इतना छोटा था कि बस अपनी दीदी के आँचल में छिपा रहता।

एक दिन, स्कूल के पास से गुजरते हुए मोहन ने कुछ बच्चों को अपनी जेब से रंग-बिरंगी चीजें निकालते देखा। कोई टॉफी खा रहा था, तो कोई छोटी-सी खिलौने वाली गाड़ी चला रहा था। मोहन ने कभी अपने पास पैसे देखे ही नहीं थे, न ही उसे पता था कि ‘जेबखर्च’ क्या होता है। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक और सवाल था। शाम को घर आकर उसने अपनी माँ से पूछा, "माँ, वो बच्चे अपनी जेब से क्या निकाल रहे थे? क्या उन्हें रोज़ पैसे मिलते हैं?"

राधा ने एक लंबी साँस ली। उसका मन भर आया। वह जानती थी कि उसके बच्चे कितनी मुश्किलों में पल रहे हैं और वह उन्हें वो छोटी-छोटी खुशियाँ भी नहीं दे पा रही थी, जो दूसरों के बच्चों को आसानी से मिल जाती थीं। उसने मोहन को समझाया, "बेटा, वो जेबखर्च होता है। बड़े शहरों में माँ-बाप अपने बच्चों को कुछ पैसे देते हैं ताकि वे अपनी मनपसंद चीजें खरीद सकें।"
मोहन कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, "माँ, क्या मुझे कभी जेबखर्च नहीं मिलेगा?" राधा के पास कोई जवाब नहीं था। उसकी आँखों में आँसू आ गए।


💔बेबस माँ बाप

अगले कुछ दिन मोहन उदास-सा रहने लगा। उसकी उदासी रामदीन और राधा दोनों ने महसूस की। रामदीन को यह देखकर बहुत बुरा लगा कि उसका बेटा दुनिया की इतनी छोटी-सी खुशी से भी वंचित है। उसने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह अपने बच्चों को भी जेबखर्च देगा।

अगले दिन से रामदीन ने एक नया काम शुरू किया। वह सुबह जल्दी उठकर जंगल से सूखी लकड़ियाँ बीनने लगा। इन्हें बाजार में बेचने पर उसे कुछ अतिरिक्त पैसे मिलते थे। ये पैसे वह एक छोटी-सी मटकी में छुपा कर रखता था। राधा भी अब और ज्यादा मेहनत करने लगी। वह गाँव की दूसरी औरतों के साथ मिलकर सिलाई का काम करती, जिससे उसे भी थोड़ी कमाई हो जाती।

धीरे-धीरे, कुछ हफ्तों के बाद, मटकी में कुछ सिक्के जमा हो गए। एक शाम, जब सारे बच्चे खाना खाकर सो चुके थे, रामदीन ने राधा को मटकी दिखाई। "राधा, देखो, मैंने कुछ पैसे बचाए हैं। इनसे हम बच्चों को उनका पहला जेबखर्च देंगे।" राधा की आँखों में खुशी के आँसू थे। यह उनके लिए सिर्फ पैसे नहीं थे, यह उनके प्यार और त्याग का प्रतीक थे।

अगली सुबह, जब बच्चे सोकर उठे, तो उन्होंने देखा कि उनकी चारपाई के पास तीन छोटे-छोटे कपड़े के थैले रखे थे। मोहन, सीता और राजू ने उत्सुकता से उन्हें खोला। मोहन के थैले में दो रुपये थे, सीता के थैले में एक रुपया और राजू के थैले में पचास पैसे का एक सिक्का। उनकी आँखें चमक उठीं। उन्होंने जीवन में पहली बार अपने हाथ में पैसे पकड़े थे।
मोहन दौड़कर अपनी माँ के पास गया और उन्हें गले लगा लिया। "माँ! ये मेरे पैसे हैं! मैं इनसे क्या खरीदूँगा?" राधा ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, ये तुम्हारे पैसे हैं। तुम इनसे वो सब खरीद सकते हो जो तुम्हें पसंद है।"

मोहन ने उन पैसों से एक छोटी-सी कलम खरीदी, सीता ने एक रंगीन रिबन और राजू ने एक छोटी-सी मीठी टॉफी। उस दिन उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उनके लिए यह सिर्फ वस्तुएँ नहीं थीं, बल्कि एक सपने का साकार होना था, एक एहसास था कि वे भी दुनिया के दूसरे बच्चों जैसे ही हैं।

उस दिन के बाद, रामदीन और राधा ने हर हफ्ते अपने बच्चों को थोड़ा-थोड़ा जेबखर्च देना जारी रखा। यह बहुत ज्यादा नहीं होता था, लेकिन इतना जरूर था कि बच्चे अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं को पूरा कर सकें। मोहन ने उन पैसों से किताबें खरीदीं, सीता ने अपनी गुड़िया के लिए कपड़े और राजू ने ढेर सारी टॉफियाँ।

यह जेबखर्च सिर्फ पैसे नहीं थे, यह बच्चों के जीवन में एक नई उम्मीद लेकर आए थे। इसने उन्हें जिम्मेदार बनना सिखाया। वे अपने पैसों को सोच-समझकर खर्च करते थे और कभी-कभी तो बचा भी लेते थे।

 मोहन ने एक बार अपने बचे हुए पैसों से एक गरीब बूढ़ी औरत को बिस्किट खरीद कर दिए। यह देखकर रामदीन और राधा का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उन्हें लगा कि उनके बच्चे सिर्फ पैसे का मोल नहीं, बल्कि इंसानियत का मोल भी सीख रहे हैं।

❤️ इस कहानी से क्या सीख मिलती है? (Moral of the Story)

यह कहानी एक गरीब परिवार की आर्थिक तंगी के बावजूद अपने बच्चों को खुशियाँ देने की कोशिश को दर्शाती है। यह दिखाती है कि प्रेम, त्याग और दृढ़ संकल्प से जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों में भी खुशियों के पल लाए जा सकते हैं। 

उस छोटे से गाँव में, मोहन, सीता और राजू के लिए वह 'जेबखर्च' सिर्फ सिक्कों का एक ढेर नहीं था, बल्कि माता-पिता के असीम प्यार और उनके उज्ज्वल भविष्य की नींव थी। 

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