![]() |
Photo credit : pixabay.com |
एक छोटे से, शांत गाँव में, जहाँ सुबह की पहली किरणें खेतों में सुनहरी आभा बिखेरती थीं और शाम की ठंडी हवा घरों में सुकून भर देती थी, एक महिला अपने प्यारे परिवार के साथ रहती थी। उसका नाम रेखा था, और उसका हृदय उस गाँव की मिट्टी की तरह ही नर्म और उपजाऊ था।
रेखा का परिवार एक खुशहाल परिवार था, जहाँ प्यार और सम्मान हर रिश्ते की नींव थे। उनके घर में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं थी, न धन की और न ही स्नेह की।
रेखा की एक ख़ास आदत थी – वह कभी भी बचा हुआ खाना व्यर्थ नहीं जाने देती थी। हर दिन, भोजन के बाद जो भी बचता, वह उसे गाँव के भूखे जानवरों के लिए निकाल देती थी। गायें, कुत्ते, बिल्लियाँ, सभी उसके इस दयालु स्वभाव से परिचित थे और हर दिन उसके घर के बाहर इंतज़ार करते रहते थे। रेखा को उन बेजुबान जीवों से गहरा प्रेम था। वह मानती थी कि हर जीव में ईश्वर का अंश है और उनकी देखभाल करना मनुष्य का धर्म है।
गाँव में जब भी कोई पुण्य का काम होता, चाहे वह किसी गरीब की मदद करना हो या मंदिर में सेवा करना, रेखा हमेशा सबसे आगे रहती थी। उसका मन दूसरों की सेवा में ही शांति पाता था। उसकी उदारता और करुणा पूरे गाँव में मशहूर थी। लोग उसे श्रद्धा और प्रेम से देखते थे।
ग्रीष्म ऋतु अपने चरम पर थी। सूरज की तपिश से धरती तवे की तरह जल रही थी। ऐसे ही एक गर्म दिन, रेखा अपने बेटे मोहन के साथ साप्ताहिक बाज़ार में गई हुई थी। बाज़ार गाँव से थोड़ी दूरी पर लगता था और दोनों माँ-बेटे पैदल ही वहाँ पहुँचे थे। बाज़ार में लोगों की चहल-पहल थी, रंग-बिरंगी दुकानें सजी हुई थीं और तरह-तरह की आवाज़ें गूँज रही थीं।
उसी समय, एक कुतिया अपने आठ या नौ छोटे-छोटे पिल्लों के साथ भोजन और पानी की तलाश में भटक रही थी। गर्मी से उसका बुरा हाल था और उसके बच्चे भी भूख-प्यास से व्याकुल थे। सड़क के उस पार एक नल था, जिसका पानी रिस-रिस कर सड़क पर जमा हो गया था। कुतिया ने उस पानी को देखा और अपनी और अपने बच्चों की प्यास बुझाने के लिए लालायित हो उठी।
अपनी जान की परवाह किए बिना, वह सड़क पार करने लगी। उसके छोटे-छोटे पिल्ले भी अपनी माँ के पीछे-पीछे भाग रहे थे। तभी, अचानक, एक तेज़ गति से चलने वाले बाइक सवार ने ध्यान नहीं दिया और एक छोटे से, मासूम पिल्ले को टक्कर मार दी। टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि पिल्ला वहीं गिर पड़ा और उसकी कोमल जान पल भर में निकल गई।
पिल्ले की माँ, कुतिया, यह भयानक दृश्य देखकर सुन्न हो गई। वह अपने मृत बच्चे के पास बैठ गई और उसे सूंघने लगी। उसकी आँखों में गहरा दुख और असहनीय पीड़ा साफ़ झलक रही थी। वह कभी अपने बच्चे को चाटती तो कभी उसे हिलाकर उठाने की कोशिश करती, मानो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसका लाडला अब इस दुनिया में नहीं रहा। उसकी करुण चीखें हवा में गूँज रही थीं, जो किसी भी संवेदनशील हृदय को झकझोर सकती थीं।
बाज़ार से लौट रही रेखा की नज़र इस दर्दनाक दृश्य पर पड़ी। उस माँ की पीड़ा देखकर उनका हृदय करुणा से भर आया। एक माँ का दर्द दूसरी माँ ही समझ सकती है। रेखा के आँखों से आँसू बहने लगे। वह उस कुतिया की बेबसी और अपने बच्चे को खोने के गम को महसूस कर पा रही थीं।
उनके आस-पास खड़े कुछ असंवेदनशील लोग इस दृश्य पर हँस रहे थे। उन्हें उस जानवर की पीड़ा मज़ाक लग रही थी और रेखा के रोने पर वे उन्हें कमजोर और भावुक कह रहे थे। उनकी कठोरता देखकर रेखा का मन और भी दुखी हो गया।
लेकिन रेखा ने उन लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने उस दुखी माँ को देखा और उसमें अपनी ही ममता का रूप पाया। वह धीरे-धीरे उस कुतिया के पास गईं और उसे प्यार से सहलाया। उनके स्पर्श में सहानुभूति और अपनापन था, जिसे उस बेचारी माँ ने महसूस किया। फिर रेखा ने उस मृत पिल्ले को उठाया और सड़क के किनारे एक सुरक्षित स्थान पर रख दिया।
इसके बाद, रेखा उस कुतिया को और उसके बचे हुए पिल्लों को अपने साथ घर ले गईं। उन्होंने अपने घर का दरवाज़ा उन बेघर जीवों के लिए खोल दिया। उन्होंने उनके लिए खाने और पानी की व्यवस्था की। रेखा ने उन सभी पिल्लों को प्यार से नहलाया और उनकी देखभाल की, जैसे वे उनके अपने बच्चे हों। उन्होंने उस दुखी माँ को भी सहारा दिया, उसके घावों पर मरहम लगाया और उसे भरपेट भोजन दिया।
रेखा ने उन पिल्लों को तब तक अपने घर में रखा जब तक कि वे इतने बड़े नहीं हो गए कि अपना ख्याल खुद रख सकें। उन्होंने गाँव के लोगों से भी अपील की कि वे इन बेसहारा जीवों के प्रति दयालु रहें और उन्हें आश्रय दें।
इस कहानी से हमें यह महत्वपूर्ण सीख मिलती है कि माँ का दिल सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी जीवों के लिए समान रूप से धड़कता है। करुणा और प्रेम किसी सीमा या प्रजाति के बंधन में नहीं बंधते। हमें दूसरों के दुख को समझना चाहिए और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, भले ही दुनिया हमें कमजोर समझे या हमारी भावनाओं का मज़ाक उड़ाए।
सच्ची मानवता दूसरों की पीड़ा में शामिल होने और उन्हें सहारा देने में ही निहित है।
रेखा ने हमें सिखाया कि हर जीवन अनमोल है और हमें हर जीव के प्रति संवेदनशील और दयालु होना चाहिए। उनका यह कार्य हमें यह भी याद दिलाता है कि एक छोटी सी करुणा का कार्य भी किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकता है।
0 टिप्पणियाँ