लालची आदमी की कहानी | Lalchi Aadmi ki Kahani | moral stories in hindi | kahaniya
एक छोटे से, गुमनाम गाँव में गरीबी का साया मंडरा रहा था। मिट्टी के घरों और धूल भरी गलियों वाले उस गाँव में, लोगों के पास कोई नियमित रोजगार नहीं था।
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Credit : Google Gemini Ai |
खेती की ज़मीनें छोटी थीं और मानसून की अनियमितता ने उन्हें और भी बेहाल कर दिया था। युवा पीढ़ी बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रही थी, जबकि बूढ़े और बेसहारा लोग वहीं अपनी किस्मत के भरोसे जी रहे थे।
एक दिन, गाँव में उम्मीद की एक किरण दिखाई दी। सरकार ने गाँव के गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से एक योजना शुरू की। इस योजना के तहत, प्रत्येक ज़रूरतमंद परिवार को एक भैंस और एक गाय दी जानी थी।
गाँव के लोगों के लिए यह किसी सपने से कम नहीं था। जिन लोगों ने कभी दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुटाई थी, उनके पास अब दूध का एक नियमित स्रोत होने वाला था।
धीरे-धीरे, गाँव में खुशहाली लौटने लगी। लोग सुबह-शाम अपनी भैंसों और गायों का दूध निकालते और उसे स्थानीय बाजारों में बेचकर कुछ आमदनी अर्जित करने लगे। बच्चों को पीने के लिए शुद्ध दूध मिलने लगा, और महिलाओं को घर चलाने में कुछ आर्थिक सहारा मिला।
गाँव में चहल-पहल बढ़ गई थी और लोगों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई थी।
लेकिन यह खुशी ज़्यादा दिन तक टिक नहीं पाई। उसी साल, मानसून धोखा दे गया और पूरे इलाके में भयंकर सूखा पड़ गया। खेत सूख गए, तालाब खाली हो गए और हरियाली कहीं नज़र नहीं आ रही थी।
जानवरों के लिए चारे की भारी कमी हो गई। लोग अपनी जमा पूंजी से थोड़ा-बहुत चारा खरीदने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह भी कब तक चलता।
धीरे-धीरे, जानवरों की हालत बिगड़ने लगी। किसान उन्हें पेड़ों के पत्ते और झाड़ियाँ खिलाकर जिंदा रखने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। जानवर कमजोर होते जा रहे थे और कई तो भूख-प्यास से मरने लगे।
उसी गाँव में एक कंजूस व्यक्ति रहता था, जिसका नाम सोहनलाल था।
उसे सरकार से एक गाय मिली थी, जो अच्छी नस्ल की थी और काफी दूध देती थी। लेकिन सोहनलाल स्वभाव से बड़ा ही लालची और निर्दयी था।
सूखे के कारण जब चारे की कमी हुई, तो उसने अपनी गाय को ठीक से चारा-पानी देना बंद कर दिया। वह सोच रहा था कि अगर गाय मर जाएगी तो उसे सरकार से बीमा के पैसे मिलेंगे, जिससे उसकी कुछ कमाई हो जाएगी।
पड़ोस में रहने वाला रामू यह सब देख रहा था। वह एक दयालु और संवेदनशील व्यक्ति था।
उसे सोहनलाल की गाय की दुर्दशा देखकर बहुत दुख होता था। वह जानता था कि गाय बेचारी भूख-प्यास से तड़प रही है। एक दिन, जब सोहनलाल घर पर नहीं था, तो रामू चुपके से सोहनलाल के घर गया और गाय को पानी पिला दिया। उसने गाय को थोड़ा सा बचा हुआ चारा भी खिला दिया, जो उसके पास अपने जानवरों के लिए रखा था।
लेकिन सोहनलाल जल्द ही लौट आया और उसने रामू को अपनी गाय को पानी पिलाते हुए देख लिया। वह गुस्से से आग बबूला हो गया और रामू को खूब खरी-खोटी सुनाई।
उसने रामू को चोर और धोखेबाज तक कह दिया। रामू ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह तो सिर्फ बेजुबान जानवर की मदद कर रहा था, लेकिन सोहनलाल पर उसकी बातों का कोई असर नहीं हुआ।
कुछ ही दिनों बाद, सोहनलाल की गाय कमजोर होकर मर गई। सोहनलाल को अपनी गाय के मरने का कोई दुख नहीं था, बल्कि वह बीमा कंपनी से पैसे लेने की तैयारी कर रहा था।
लेकिन गाँव के लोगों ने उसकी कंजूसी और निर्दयता को देख लिया था। उन्होंने बीमा कंपनी को सोहनलाल के बुरे बर्ताव के बारे में बता दिया।
इस घटना से रामू बहुत दुखी हुआ। उसे इस बात का अफ़सोस था कि वह उस बेजुबान जानवर की जान नहीं बचा सका। लेकिन इस घटना ने गाँव के लोगों को एक महत्वपूर्ण सीख दी। उन्होंने समझा कि लालच और स्वार्थ इंसान को कितना अंधा बना सकता है।
उन्होंने यह भी सीखा कि मुश्किल समय में एक-दूसरे की मदद करना और जानवरों के प्रति दया भाव रखना कितना ज़रूरी है।
सोहनलाल को उसके कर्मों का फल मिला, और गाँव के लोगों ने एक-दूसरे के साथ और भी ज़्यादा एकजुट होकर जीवन जीने का संकल्प लिया।
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