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बकरी और मुर्गे की मज़ेदार कहानी | Hindi kahani | Bakri our murghe ki majedar kahani | Children story in hindi

बकरी और मुर्गे की मज़ेदार कहानी | Hindi kahani | Bakri our murghe ki majedar kahani | Children story in hindi


एक गाँव में, पहाड़ी की तलहटी के पास, शांति से जीवन बिता रहे थे दो अनोखे दोस्त - बबली नाम की एक शरारती बकरी और मिट्ठू नाम का एक बातूनी मुर्गा। बबली, अपनी चंचल कूद-फाँद और हरियाली चबाने की आदत के लिए जानी जाती थी, जबकि मिट्ठू अपनी सुबह की अज़ानों और दिन भर की गपशप के लिए मशहूर था।
Credit : Google gemini

उनकी दोस्ती थोड़ी अजीब ज़रूर थी, क्योंकि बकरियाँ आमतौर पर मुर्गों के साथ ज़्यादा घुलती-मिलती नहीं थीं। लेकिन बबली की उत्सुकता और मिट्ठू की मिलनसारिता ने उन्हें एक-दूसरे के करीब ला दिया था। वे अक्सर गाँव के बाहर, एक पुराने बरगद के पेड़ के नीचे मिलते थे, जहाँ बबली ताज़ी घास चरती थी और मिट्ठू अपनी कहानियाँ सुनाता था।

एक दिन, मिट्ठू ने बबली को एक गुप्त खजाने के बारे में बताया। उसने सुना था कि गाँव के पास वाली पुरानी हवेली में किसी ज़माने में बहुत सारा सोना छुपाया गया था। बबली, जिसे रोमांच बहुत पसंद था, तुरंत उत्साहित हो गई।

"सच में, मिट्ठू?" बबली ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से पूछा। "क्या हमें वह खजाना मिल सकता है?"
"कोशिश करने में क्या हर्ज़ है, बबली?" मिट्ठू ने अपनी गर्दन घुमाते हुए कहा। "मैंने सुना है कि हवेली अब वीरान पड़ी है और वहाँ कोई नहीं जाता।"

अगले दिन, सूरज की पहली किरण के साथ ही दोनों दोस्त हवेली की ओर निकल पड़े। रास्ता थोड़ा मुश्किल था, पथरीला और झाड़ियों से भरा हुआ, लेकिन उनकी दोस्ती और खजाने की उम्मीद ने उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत दी।

जब वे हवेली पहुँचे, तो वह सचमुच में भूतिया लग रही थी। दीवारों पर पुरानी बेलें लिपटी हुई थीं, खिड़कियाँ टूटी हुई थीं और दरवाज़े ज़ंग खाए हुए थे। अंदर घुसते ही उन्हें धूल और सीलन की गंध आई।
"यह जगह थोड़ी डरावनी है," बबली ने अपनी नाक सिकोड़ते हुए कहा।
"डरने की कोई बात नहीं, बबली," मिट्ठू ने उसे हौसला दिया। "बस मेरे पीछे आओ।"

मिट्ठू, अपनी छोटी-छोटी आँखों से हर कोने को ध्यान से देखता हुआ, हवेली के अंदर-अंदर घूमने लगा। बबली, अपनी मज़बूत टाँगों के सहारे, उसके पीछे-पीछे चल रही थी। उन्होंने कई कमरे देखे, जिनमें पुरानी और टूटी हुई फर्नीचर पड़ी थी, लेकिन खजाने का कोई निशान नहीं था।

वे निराश होने लगे थे, जब मिट्ठू को एक पुरानी सीढ़ी दिखाई दी, जो ऊपर की ओर जा रही थी।
"शायद ऊपर कुछ मिल जाए," मिट्ठू ने कहा और फुदक कर पहली सीढ़ी पर चढ़ गया। बबली भी धीरे-धीरे उसके पीछे चढ़ने लगी।

ऊपर एक छोटा सा कमरा था, जिसकी एक दीवार पूरी तरह से गिर चुकी थी। कमरे के बीच में एक पुराना संदूक पड़ा था।
"देखो!" मिट्ठू चिल्लाया और संदूक की ओर भागा।
बबली भी तेज़ी से उसके पास पहुँची। संदूक बहुत भारी था और उस पर एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था।
"अब क्या करें?" बबली ने चिंता से पूछा।
मिट्ठू ने कुछ देर सोचा और फिर अपनी तेज़ चोंच से ताले के आसपास की धूल और मिट्टी हटाने लगा। अचानक, उसे एक छोटा सा छेद दिखाई दिया।
"बबली, अपनी सींगों से इस छेद को थोड़ा बड़ा करने की कोशिश करो," मिट्ठू ने कहा।

बबली ने अपनी मज़बूत सींगों का इस्तेमाल किया और धीरे-धीरे छेद को बड़ा कर दिया। थोड़ी देर बाद, ताला खुल गया!
दोनों दोस्तों ने मिलकर संदूक का ढक्कन खोला। उनकी आँखें चमक उठीं। संदूक सोने के सिक्कों, मोतियों और जवाहरातों से भरा हुआ था!
"हमें मिल गया!" बबली खुशी से चिल्लाई और एक सोने का सिक्का अपने मुँह में दबाने की कोशिश की।
"रुको, बबली!" मिट्ठू ने हँसते हुए कहा। "यह सब हमारा नहीं है। हमें इसे गाँव वालों को बताना चाहिए।"

बबली को थोड़ा दुख हुआ, लेकिन वह जानती थी कि मिट्ठू सही कह रहा है। वे दोनों मिलकर गाँव के सरपंच के पास गए और उन्हें खजाने के बारे में बताया।

सरपंच और गाँव वाले हवेली पर आए और खजाने को देखकर हैरान रह गए। उन्होंने फैसला किया कि खजाने का इस्तेमाल गाँव के विकास के लिए किया जाएगा। टूटे हुए रास्तों को ठीक करवाया गया, एक नया स्कूल बनवाया गया और गाँव में बिजली भी आ गई।

बबली और मिट्ठू गाँव के हीरो बन गए। उनकी दोस्ती की कहानी दूर-दूर तक फैल गई। लोगों ने जाना कि दोस्ती रंग, रूप या जाति नहीं देखती, बस दो दिलों का सच्चा बंधन होती है।

और उस बरगद के पेड़ के नीचे, बबली और मिट्ठू अक्सर मिलते रहे, अपनी बहादुरी की कहानियाँ सुनाते रहे और हँसते-मुस्कुराते हुए एक-दूसरे का साथ निभाते रहे। 

उनकी दोस्ती उस खजाने से भी ज़्यादा कीमती थी, जिसे उन्होंने साथ मिलकर खोजा था।

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