रवि और मोहित एक शांत पार्क के बेंच पर बैठे हुए हैं, जहाँ आसपास हरी-भरी घास और कुछ फूल खिले हैं। दोपहर की धूप हल्की गुनगुनी है।
रवि: (एक गहरी सांस लेते हुए) यार मोहित, कभी-कभी सोचता हूँ कि दुनिया किस तरफ जा रही है। सोशल मीडिया देखो तो हर कोई अपनी एक परफेक्ट इमेज बनाने में लगा है। फ़िल्टर, एडिटिंग, और न जाने क्या-क्या... असली चेहरा तो कहीं खो ही गया है।
मोहित: (सहमत होते हुए) हाँ रवि, यह सच है। ऐसा लगता है जैसे आजकल लोगों के लिए वास्तविकता से ज़्यादा ज़रूरी यह हो गया है कि वे दूसरों को कितना आकर्षक और सफल दिखें। अंदर क्या चल रहा है, इससे किसी को फ़र्क नहीं पड़ता।
रवि: बिल्कुल! मेरे ऑफिस में एक नया लड़का आया है। हमेशा महंगे सूट पहनता है, लेटेस्ट गैजेट्स रखता है, और ऐसी बातें करता है जैसे उसने दुनिया जीत ली हो। लेकिन जब उसे कोई काम दिया जाता है, तो अक्सर वह अटक जाता है। साफ़ दिखता है कि सारा ध्यान सिर्फ़ दिखावे पर है, काम पर नहीं।
मोहित: हाँ, मैंने भी ऐसे कई लोग देखे हैं। कॉलेज में कुछ लड़के सिर्फ़ महंगी बाइक और कार दिखाकर लड़कियों को इंप्रेस करने की कोशिश करते थे, जबकि उनके नंबर मुश्किल से पास होने लायक भी नहीं आते थे। यह देखकर दुख होता था कि वे अपनी झूठी शान के चक्कर में अपना भविष्य दांव पर लगा रहे हैं।
रवि: और यह सिर्फ़ युवाओं तक ही सीमित नहीं है। मैंने बड़े-बड़े लोगों को भी देखा है जो अपनी दौलत और ताक़त का दिखावा करते रहते हैं, जबकि असलियत में उनके रिश्ते खोखले होते हैं और अंदर से वे अकेले होते हैं।
मोहित: बिल्कुल सही। मेरे पड़ोस में वर्मा जी हैं। हर पार्टी में सबसे महंगे कपड़े और गहने पहनकर आती हैं। बड़ी-बड़ी बातें करती हैं, लेकिन मैंने सुना है कि उनकी बहू घर में बहुत परेशान रहती है। बाहर से सब कुछ कितना अच्छा दिखता है, लेकिन अंदर की कहानी कुछ और ही होती है।
रवि: यह सब देखकर मुझे लगता है कि हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ दिखावा असली गुणों से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। अच्छा बनने के लिए तो मेहनत करनी पड़ती है, त्याग करना पड़ता है, अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना पड़ता है। यह सब आसान नहीं है।
मोहित: हाँ रवि, तुम ठीक कह रहे हो। त्याग और समर्पण आजकल दुर्लभ होते जा रहे हैं। हर कोई बस भोग और आराम चाहता है। भौतिकवाद इतना हावी हो गया है कि लोगों को जो मिला है, उससे कभी संतोष नहीं होता। हमेशा और ज़्यादा पाने की लालसा लगी रहती है। और जब कुछ कमी रह जाती है, तो शिकायतों की एक लंबी लिस्ट तैयार हो जाती है।
रवि: और देखो, अच्छा दिखने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते। डाइटिंग के नाम पर भूखे रहते हैं, घंटों जिम में पसीना बहाते हैं, सिर्फ़ इसलिए ताकि वे एक खास तरह के साँचे में फिट दिखें। सर्दी हो या गर्मी, फैशन के हिसाब से कपड़े पहनते हैं, भले ही कितनी असुविधा हो।
मोहित: हाँ, और घरों का भी यही हाल है। लोगों ने अपने घरों को अनावश्यक चीज़ों से भर दिया है। लेटेस्ट फर्नीचर, डेकोरेशन के सामान, जिनका शायद ही कभी इस्तेमाल होता हो, सिर्फ़ इसलिए खरीदते हैं ताकि मेहमानों के सामने उनका अच्छा इम्प्रेशन पड़े। एक तरह से घरों को गोदाम बना दिया है।
रवि: मुझे याद है, एक बार मैंने एक बस्ती देखी थी जहाँ बच्चों के पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े तक नहीं थे। गर्मी में भी वे फटे-पुराने कपड़ों में घूम रहे थे। और दूसरी तरफ़, हमारे शहरों में हर कोने पर कपड़ों और जूतों की दुकानें खुली हैं, जहाँ लोग हर सीज़न में नए-नए डिज़ाइन खरीदते हैं, भले ही उनके पास पहले से कितने सारे कपड़े हों।
मोहित: बिल्कुल! मैंने भी देखा है। कुछ बच्चों के पास तो स्कूल जाने के लिए चप्पल तक नहीं होतीं, और वहीं दूसरी तरफ़ लोग एक-एक जोड़ी जूतों पर हज़ारों रुपये खर्च कर देते हैं, सिर्फ़ इसलिए कि वे फैशनेबल दिखें। कल मैं एक नई जूतों की दुकान पर गया था। इतनी भीड़ थी, जैसे कोई ज़रूरी सामान मिल रहा हो। लेकिन वहाँ सब सिर्फ़ दिखावटी और महंगे जूते थे।
रवि: यह सब देखकर बहुत निराशा होती है। ऐसा लगता है जैसे हम अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। सच्चाई, ईमानदारी, और सादगी जैसे मूल्यों का महत्व कम होता जा रहा है।
मोहित: हाँ रवि, लेकिन मुझे लगता है कि हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। भले ही यह चलन कितना भी हावी हो जाए, हमें खुद को इससे अलग रखना होगा। मैंने तो यह फैसला कर लिया है कि मैं हमेशा सच बोलूंगा और ईमानदार रहूंगा, भले ही इससे मुझे कुछ नुकसान भी हो।
रवि: यह बहुत अच्छी बात है, मोहित। हमें अपने बच्चों को भी यही सिखाना चाहिए कि असली सुंदरता बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि अच्छे चरित्र और नेक इरादों में होती है।
मोहित: हाँ, हमें उन्हें त्याग, सहानुभूति, और दूसरों की मदद करने का महत्व समझाना होगा। तभी शायद कुछ बदलाव आ सके।
रवि: तुम सही कह रहे हो। दिखावे की इस दौड़ में हमें रुककर सोचना होगा कि हम क्या खो रहे हैं। सच्ची खुशी तो साधारण चीजों में और अच्छे इंसानों के साथ जुड़ने में है।
मोहित: बिल्कुल। और हमें यह भी याद रखना होगा कि अंत में हमारा दिखावा नहीं, बल्कि हमारे कर्म ही हमारी पहचान बनाएंगे।
सीख:
आज के समाज में, जहाँ बाहरी दिखावे को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, यह कहानी हमें एक महत्वपूर्ण संदेश देती है। सच्ची सुंदरता और मूल्य बाहरी आकर्षण में नहीं, बल्कि आंतरिक गुणों, ईमानदारी और दूसरों के प्रति करुणा में निहित होते हैं।
हमें दिखावे की इस चकाचौंध से बचना चाहिए और उन मूल्यों को पोषित करना चाहिए जो वास्तव में मायने रखते हैं। त्याग, समर्पण और सादगी का जीवन जीना ही सच्ची संतुष्टि और खुशी की ओर ले जाता है। हमें अपने कर्मों से अपनी पहचान बनानी चाहिए, न कि क्षणभंगुर बाहरी दिखावे से।
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