गंगापुर गाँव की एक कच्ची मिट्टी की दीवार वाली झोपड़ी में रोशनी की एक किरण टिमटिमाती थी – अठारह वर्षीय राधा। उसका बचपन धूप-छाँव जैसा रहा था। जब वह बहुत छोटी थी, तभी उसके पिता चल बसे। माँ, जमुना, दूसरों के खेतों में मजदूरी करके परिवार का पेट पालती थी।
राधा का मन पढ़ाई में खूब लगता था, पर गरीबी की मार ऐसी थी कि उसे जल्दी ही स्कूल छोड़ना पड़ा। घर की हालत भी खस्ता थी। बारिश के दिनों में छत टपकती थी, और गर्मी में बिना पंखे के तपती झोपड़ी में रहना मुश्किल होता था। जो कुछ भी खाने को मिल जाता, राधा और उसकी माँ संतोष से खा लेते थे।
समय बीतता गया और राधा धीरे-धीरे बड़ी हो गई। उसकी सुंदरता और शालीनता गाँव भर में चर्चा का विषय बनने लगी। लेकिन उसके गरीब होने के कारण उसकी शादी एक बड़ी समस्या बन गई। जमुना दिन-रात अपनी बेटी के लिए एक अच्छा घर-वर ढूंढने की चिंता में घुली रहती थी। गाँव में कुछ भले लोग ज़रूर थे जो उनकी मदद करना चाहते थे, पर सीमित संसाधनों के कारण वे भी ज़्यादा कुछ नहीं कर पा रहे थे।
एक दिन, गाँव के सरपंच ने जमुना को ‘उम्मीद’ नामक एक सामाजिक संस्था के बारे में बताया। यह संस्था गरीब और जरूरतमंद परिवारों की मदद करती थी और हाल ही में उन्होंने सामूहिक विवाह का आयोजन करने का निर्णय लिया था। सरपंच ने जमुना को सलाह दी कि वह राधा का नाम इस कार्यक्रम के लिए दर्ज कराए।
जमुना को यह सुनकर थोड़ी उम्मीद जगी। उसने तुरंत ‘उम्मीद’ संस्था के कार्यालय जाकर अपनी बेटी के बारे में बताया। संस्था के कार्यकर्ताओं ने उनकी बात ध्यान से सुनी और राधा का नाम सामूहिक विवाह के लिए पंजीकृत कर लिया। उन्होंने जमुना को आश्वासन दिया कि वे राधा के लिए एक योग्य वर ढूंढने में भी मदद करेंगे।
कुछ ही दिनों में, संस्था ने राधा के लिए एक सुशील और मेहनती युवक, मोहन, को चुना। मोहन भी एक गरीब परिवार से था, लेकिन उसके पास एक छोटा सा खेत था जिस पर वह खेती करके अपना और अपने परिवार का गुजारा करता था। राधा और मोहन ने एक-दूसरे को पसंद किया और शादी के लिए राजी हो गए।
‘उम्मीद’ संस्था ने सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन गाँव के एक बड़े मैदान में किया। इस समारोह में कई गरीब जोड़े शामिल हुए। राधा दुल्हन के लिबास में बहुत सुंदर लग रही थी। उसकी आँखों में बरसों की उदासी के बाद आज खुशी की चमक थी। गाँव के लोगों ने भी इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार हर जोड़े को कुछ न कुछ भेंट दी।
‘उम्मीद’ संस्था ने हर नवविवाहित जोड़े को ₹25,000 की आर्थिक सहायता प्रदान की, ताकि वे अपना नया जीवन आसानी से शुरू कर सकें। लेकिन राधा के लिए संस्था ने एक विशेष उपहार तैयार किया था। समारोह के अंत में, संस्था के अध्यक्ष ने मंच पर आकर घोषणा की कि ‘उम्मीद’ संस्था राधा और मोहन को एक नया घर उपहार में दे रही है। यह सुनकर राधा और जमुना की आँखों में आँसू आ गए। वह एक छोटा सा, लेकिन पक्का घर था, जिसमें छत नहीं टपकती थी और गर्मी में आराम के लिए एक पंखा भी लगा हुआ था।
गाँव वालों ने तालियाँ बजाकर ‘उम्मीद’ संस्था के इस उदार कार्य की सराहना की। राधा और मोहन ने सभी का आभार व्यक्त किया। उस दिन, राधा ने पहली बार महसूस किया कि गरीबी उसकी किस्मत नहीं है और अच्छे लोग अभी भी दुनिया में मौजूद हैं।
अपने नए घर में राधा और मोहन खुशी-खुशी रहने लगे। मोहन अपने खेत में मेहनत करता था और राधा घर का काम संभालती थी। उनके जीवन में अब खुशियों की बारिश हो रही थी, जिसमें न तो छत टपकती थी और न ही गर्मी की तपिश महसूस होती थी। जमुना भी अब निश्चिंत होकर अपनी बेटी के सुखी जीवन को देखकर खुश रहती थी।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि समाज में एकजुटता और करुणा की भावना से किसी भी गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति के जीवन में खुशियों के रंग भरे जा सकते हैं। छोटी-छोटी मदद भी किसी के लिए एक नया सवेरा ला सकती है।
‘उम्मीद’ जैसी संस्थाएं यह साबित करती हैं कि यदि हम मिलकर प्रयास करें, तो हर किसी को एक सम्मानजनक और सुखी जीवन जीने का अवसर मिल सकता है। राधा की कहानी आशा और मानवीयता की एक प्रेरणादायक गाथा है।
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