विधवा माँ की दहाड़: कैसे एक औरत ने अपने बेटे के लिए अन्याय से लड़ाई जीती:Hindi kahani|Moral story in hindi
Image Credit: Created by Google AI |
रेखा और रतनलाल, दो अलग-अलग गाँवों के रहने वाले थे, वे दोनों कॉलेज में मिले थे और उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई। समय बीता और दोनों विवाह के बंधन में बंध गए।
रतनलाल के दो बड़े भाई भी थे, और वह अपने पिता का सबसे छोटा बेटा था। पिता की मृत्यु के बाद, खेत का बंटवारा हुआ, जिसमें रतनलाल का भी हिस्सा आया।
रेखा और रतनलाल दोनों ही अपने जीवन से खुश थे और मिलकर खेती-बाड़ी का काम करते थे। उनके जीवन में खुशियों की बहार तब आई जब उनके घर एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने सोनू रखा।
एक दिन, जब रतनलाल खेत में काम कर रहा था, अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई। उसके बाद से वह लगातार बीमार रहने लगा। दो साल बीत गए, लेकिन उसकी बीमारी ठीक नहीं हुई। इलाज में घर के सारे पैसे खर्च हो गए। आखिरकार, उन्हें खेत गिरवी रखकर रतनलाल का इलाज करवाना पड़ा, पर विधि को कुछ और ही मंजूर था। रतनलाल इस दुनिया से चल बसा।
अब घर का सारा खर्च और कर्ज का बोझ रेखा के कंधों पर आ गया। हार न मानते हुए, रेखा ने हिम्मत दिखाई। उसने कर्ज लेकर दो गायें खरीदीं, और फिर दो भैंसें भी। दिन-रात जी तोड़ मेहनत करके उसने धीरे-धीरे सारा कर्ज चुका दिया। जब उसने गिरवी रखे खेत को छुड़ाने की बात की, तो रतनलाल के दोनों भाइयों ने, जिन्होंने जमीन गिरवी रखी थी, उसे वापस देने से इनकार कर दिया। वे रेखा से बार-बार झगड़ा करने लगे, उसे परेशान करने लगे।
यह सब देखकर गोलू, जो अब नौ साल का हो गया था और सब कुछ समझता था, अपनी माँ से भावुक बातें करने लगा।
एक दिन खेत पर काम करते हुए गोलू ने अपनी माँ से पूछा, "माँ, चाचाजी और बड़े पिताजी क्यों इतने बुरे हैं? वे हमारा खेत क्यों नहीं लौटा रहे?"
रेखा ने अपने बेटे को गले लगाया और प्यार से कहा, "बेटा, कुछ लोग लालची होते हैं। उन्हें दूसरों की तकलीफ दिखाई नहीं देती। लेकिन हमें हिम्मत नहीं हारनी है। तुम्हारे पिताजी हमेशा कहते थे कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती।" उसकी आँखों में आँसू थे, पर उसने उन्हें छुपा लिया।
गोलू ने मासूमियत से पूछा, "तो क्या हम अपना खेत कभी वापस नहीं पा सकेंगे?"
रेखा ने दृढ़ स्वर में कहा, "ज़रूर पाएंगे, बेटा। हम लड़ेंगे। तुम्हारे पिताजी ने हमें यही सिखाया है।"
खेत के इस मसले को सुलझाने के लिए गाँव में पंचायत बैठी। पंचायत में रतनलाल के दोनों भाइयों ने गिरवी रखी जमीन की कीमत से कहीं ज़्यादा रकम की मांग की। रेखा अकेली थी और उनके सामने उसकी एक न चली। पंचायत में फैसला भाइयों के हक में होता दिख रहा था।
लेकिन रेखा हार मानने वाली नहीं थी। उसने न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। वहाँ भी उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ा। रतनलाल के दोनों भाइयों की गाँव में अच्छी पहचान थी, जिसका असर कहीं न कहीं न्याय प्रक्रिया पर भी पड़ रहा था।
आखिरकार, रेखा को गिरवी रखी जमीन की कीमत से ज़्यादा रकम देनी पड़ी, लेकिन उसे अपना खेत वापस मिल गया।
अब खेत रेखा के पास था। वह खुश भी थी कि उसने इतनी मुश्किलों के बाद अपना हक वापस पा लिया था, लेकिन वह दुखी भी थी क्योंकि इस खुशी को साझा करने के लिए उसका पति उसके साथ नहीं था।
खेत की मिट्टी को छूकर, उसने अपने मन में कहा, "तुम देख रहे हो ना? मैंने हार नहीं मानी। यह खेत अब हमारा है।"
एक दिन, रेखा और गोलू खेत पर गए। सूरज की सुनहरी किरणें खेत पर पड़ रही थीं और हवा में फसलों की सौंधी खुशबू फैली हुई थी।
गोलू ने अपनी माँ से पूछा, "माँ, पिताजी को यह खेत बहुत पसंद था ना?"
रेखा ने एक गहरी साँस ली और कहा, "हाँ बेटा, उन्हें इस मिट्टी से प्यार था। वह हमेशा कहते थे कि यह हमारी माँ है, जो हमें पालती है।"
गोलू ने खेत की मिट्टी को अपने हाथों में लिया और कहा, "तो हम भी इसकी देखभाल करेंगे, है ना माँ?"
रेखा ने मुस्कुराकर अपने बेटे के सिर पर हाथ फेरा और कहा, "हाँ बेटा, हम मिलकर इस खेत को और भी हरा-भरा बनाएंगे। यही तुम्हारे पिताजी का सपना था।"
गोलू ने पूछा, "माँ, जब पिताजी थे तो सब कितना अच्छा था ना? अब वे क्यों नहीं हैं?" उसकी आवाज़ में उदासी थी।
रेखा ने गोलू को गले लगाते हुए कहा, "बेटा, कुछ चीजें हमारे हाथ में नहीं होतीं। पिताजी हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे। उनकी यादें हमें हिम्मत देती रहेंगी।"
गोलू ने अपनी माँ की आँखों में देखा और कहा, "माँ, तुम बहुत बहादुर हो। तुमने अकेले सब कुछ संभाल लिया।"
रेखा ने नम आँखों से कहा, "तुम भी तो मेरे साथ हो, गोलू। तुम्हारी हिम्मत ही मेरी ताकत है।"
खेत में काम करते हुए, रेखा और गोलू अक्सर ऐसी ही बातें करते थे। गोलू धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था और अपनी माँ के संघर्ष को समझ रहा था। वह अपनी माँ का सहारा बनना चाहता था। रेखा भी गोलू को हिम्मत और हौसले की बातें बताती रहती थी, उसे जीवन की सच्चाई से अवगत कराती थी।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। सच्ची मेहनत, अटूट विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। अपनों के चले जाने का दुख हमेशा रहता है, लेकिन उनकी यादें हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।
सबसे बड़ी सीख यह है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है, भले ही राह कितनी भी कठिन क्यों न हो। और अंत में, परिवार का साथ और बच्चों का प्यार सबसे बड़ी ताकत होते हैं, जो हमें हर मुश्किल परिस्थिति से लड़ने की हिम्मत देते हैं।
0 टिप्पणियाँ