जब नदी में नाव और पूल नहीं हो तो व्यक्ति अपने आप तैरना सीख जाता है" : Real Story
motivational story in hindi : Pankaj Tripathi, पंकज त्रिपाठी स्टोरी
पंकज त्रिपाठी बॉलीवुड के जाने-माने कलाकारों में से एक है । पंकज त्रिपाठी का जन्म बिहार में गोपालगंज के बेलसंड गांव में एक बहुत गरीब किसान परिवार में हुआ था । उनके पिताजी खेती से जुड़े थे और ब्राह्मण होने के कारण पूजा पाठ करते थे । परिवार में पंकज त्रिपाठी के दो बहन और एक भाई है जिसमें सबसे छोटे पंकज त्रिपाठी है । उनके परिवार में कोई भी सदस्य संगीत कला या नाट्य कला से जुड़े हुए नहीं थे ।
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Pankaj tripathi |
पंकज त्रिपाठी के गांव में परंपरा के अनुसार छठ पूजा होती थी । छठ पूजा के दूसरे दिन नाट्यकला का आयोजन होता था । इस उत्सव को पंकज त्रिपाठी बचपन से देखते आ रहे थे । जब वह सातवीं आठवीं कक्षा में पढ़ते थे तो यह कार्यक्रम के समय जब किसी बच्चे के रोल की जरूरत रहती तो उसमें वह नाटक के लिए तैयार हो जाते । इस तरह नाट्य कला में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी थी । उस समय के दौरान पंकज त्रिपाठी गांव में ना बिजली थी और ना ही गांव में टीवी थी । सिनेमा क्या होता है यह तो उन्हें पता ही नहीं था ।
पंकज त्रिपाठी 11वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे । उस समय बरेली के एक थिएटर का उद्घाटन करने हेतु उनके पिताजी को पूजा पाठ करने के लिए बुलाया गया था । उनके पिताजी उन्हें साथ ले गए थे तब उन्होंने पहली बार थिएटर में फिल्म देखी थी और उस फिल्म का नाम था जय संतोषी मां ।
पंकज त्रिपाठी के पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे । पिताजी ने उन्हें कॉलेज की पढ़ाई के लिए पटना भेजा परंतु मेडिकल की परीक्षा में वह दो बार फेल हुए । कॉलेज के दौरान पढ़ाई में मन नहीं लगता था इसलिए कॉलेज में छात्र आंदोलन से जुड़े हुए थे जिस कारण उन्हे जेल तक हो गई थी । पंकज त्रिपाठी के साथी मित्र के कहने पर नाट्य समारोह देखने जाते । एक दिन अंधा कुआं नाट्य प्ले देखने के बाद वह काफी प्रभावित हुए । उस दिन वह रोए थे । उस समय उन्होंने छात्र संगठन प्रवृति छोड़कर नाट्य कला में पदार्पण करने का मन बना लिया । वह सोचते थे अगर इस काम से जीवन का गुजारा हो सकता है तो वह यही काम करेंगे । वह धीरे-धीरे काम करते गये । एक दिन एक अभिनय में उन्होंने चोर की भूमिका का किरदार दिया गया । लोगों ने काफी पसंद किया और अगले दिन अखबार में पंकज त्रिपाठी के बारे में दो-तीन लाइनें लिख दी गई । उस अखबार को पढ़कर वह और प्रेरित हुए ।
घर की परिस्थिति को देखते हुए पंकज त्रिपाठी के पिताजी और चाचा ने उन्हें होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने को कहा । कोर्स पूरा करके वह पटना में एक फाइव स्टार होटल में सेफ का काम करने लगे । उन्हें हर रोज 25 से 30 किलो तक प्याज और आलू सिलने कहा जाता । फिर भी उस काम को उन्होंने छोड़ा नहीं । वह हर रोज सोचते थे कि उन्हें पूरी जिंदगी यह काम नहीं करना है । जिंदगी में कुछ अलग करना है । पंकज त्रिपाठी जूते बेचने का काम तक कर चुके हैं ।
पंकज त्रिपाठी एक्टिंग सीखने के लिए दिल्ही के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा मैं एडमिशन के लिए गये । ड्रामा स्कूल में एडमिशन पाने के लिए विद्यार्थी का ग्रेज्युएट होना अनिवार्य था । जबकि, पंकज त्रिपाठी ने बारहवीं कक्षा के बाद कॉलेज की शिक्षा बीच में ही छोड़ दी थी । ड्रामा स्कूल के एडमिशन की यह प्रक्रिया सुनने के बाद उनहोंने फिर से कॉलेज में दाखिला लेकर ग्रेजुएशन पुरा किया । सन 2001 में वह दिल्ली में स्थित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया । एडमिशन के लिए विद्यार्थी को परीक्षा देनी होती है उसमें वह दो बार असफल रहे थे । फिर तीसरी बार उन्होंने परीक्षा देखकर पास की और एडमिशन हो गया ।
पंकज त्रिपाठी ने जिस दिन सोचा था की ड्रामा स्कुल जाना है उस दिन से उन्हें ड्रामा स्कूल जाने में 6 साल लग गए थे । ड्रामा स्कूल में 3 साल तक एक्टिंग सीखी । बचपन से वह हिंदी मीडियम के छात्र रहने के कारण उन्हें इंग्लिश नहीं आती थी । फिर भी उन्होने हिम्मत नहीं हारी ।
पंकज त्रिपाठी ने लव मैरिज किया । 2004 में वे और उनकी पत्नी मुंबई पहुंचे । मुंबई में जाने के बाद कोई काम ना मिलने पर वह असहज नहीं हुए । उनकी गरीबी, पिछड़ापन उसे संघर्ष करने की क्षमता देता । वह हर रोज 10 जगह जाते । कोई भाव दे या ना दे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था । उन्हें पता ही नहीं चलता था कि वह उस समय में संघर्ष कर रहे हैं । उन्हें सिर्फ इतना पता था कि उनमें क्षमता है और एक दिन जरूर करके दिखाएंगे ।
घर चलाने के लिए पैसों की आवश्यकता थी । पत्नी ने बी.एड किया हुआ था । इस कारण उन्हें एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई । पत्नी की सैलरी से घर चलता था । पंकज त्रिपाठी हर रोज ऑडिशन देने के लिए एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर जाया करते । जहां जाते वहां उन्हें नोट फिट कहकर वापस भेज दिया जाता ।
बॉलीवुड मे काम ढूंढते ढूंढते 7 - 8 साल यूं ही निकल गए । पंकज त्रिपाठी के गांव के लोगों को भी लगता था कि वह मुंबई में एक्टर का काम नहीं करता है बल्कि हीरोइन के कपड़े सीता है या तो कुछ सेटिंग्स वगैरा का काम करता है । क्योंकि, पंकज त्रिपाठी ने काफी समय काम न मिलने के कारण यूं ही गंवा दिया था । वह फिल्मो में नजर नहीं आते थे । गांव के लोग उनकी बातों पर विश्वास नहीं करते थे ।
पंकज त्रिपाठी अपना मोबाइल हमेशा खिड़की के पास रखते थे । जिस कारण मोबाइल में नेटवर्क अच्छा रहे । उन्हे हर रोज कुछ ना कुछ उम्मीद रहती की कोई प्रोड्यूसर या असिस्टेंट फोन करके कहे कि आपका फिल्म मैं सिलेक्शन हो गया है ।
एक दिन पंकज त्रिपाठी फिल्म डिरेक्टर के दफ्तर में फोटो देकर लौट रहे थे। तब डिरेक्टर ने उसे देखा, पूछा और एक ऑडिशन देने को कहा । पंकज त्रिपाठी ने ऑडिशन दिया । डिरेक्टर को अच्छा लगा और एक के बाद एक करते 10 से 15 ऑडिशन दे दिए । बाद में डिरेक्टर ने उन्हें कहा कि हम आपको फोन करेंगे कि, आप फिल्म कर रहे हो या नहीं । जब पंकज त्रिपाठी उनके साथी मित्र के घर पैदल जा रहे थे तब उन्हें कॉल आया और कहा गया कि तुम फिल्म में काम करने के लिए फाइनल हो गई हो । यह सुनकर पंकज त्रिपाठी भावुक होकर वही मैदान में बैठ गए और रोने लगे । मैदान में क्रिकेट खेल रहे बच्चे उन्हें देख रहे थे । मुंबई आने के बाद यह उनकी पहली फिल्म थी जिसका नाम था धर्म ।
इस तरह पंकज त्रिपाठी को छोटे-छोटे रोल मिलते गये पर उन्हें पहचान नहीं मिली । ना ही उन्हें कोई जानता था । पंकज त्रिपाठी जब एक्टिंग के लिए सेट पर जाते तो उन्हें कोई रिस्पेक्ट नहीं करता था । कर्मचारियो से जब चाय की डिमांड करते तो कुछ बहाने बता देते या तो नहीं देते ।
गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म की वजह से उन्हें एक नई पहचान मिली । इस फिल्म में उनके कैरेक्टर को काफी पसंद किया गया । इस तरह उनके करियर की शुरुआत हुई। एक समय था जब वह काम ढूंढ रहे थे पर आज के समय में उन्हें काम ढूंढता है । उन्हें हॉलीवुड में काम करने के लिए ऑफर मिल चुके हैं। आज बॉलीवुड के बड़े-बड़े दिग्गज कलाकार पंकज त्रिपाठी को सम्मान देते हैं ।
पंकज त्रिपाठी अपनी सफलता का श्रेय उनकी पत्नी को भी देते हैं जिन्होंने मुश्किल वक्त में उनका पूरा साथ दिया । बॉलीवुड में इतने बड़े सुपरस्टार होने के बावजुद वह एक सिम्पल जीवन जीते हैं।
पंकज त्रिपाठी का कहना है कि, "जब नदी में नाव और पूल नहीं हो तो व्यक्ति अपने आप तैरना सीख जाता है" । पंकज त्रिपाठी कि यह सच्ची संघर्ष भरी दास्तां सबके लिए एक प्रेरणा स्त्रोत है ।
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