हरिपुरा गाँव में मगनलाल नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह अपनी चालाकी और कंजूसी के लिए पूरे इलाके में मशहूर था।
उसके पास काफी जमीन थी और वह अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों से जी तोड़कर काम करवाता था। सूरज निकलने से पहले ही उन्हें खेत में बुला लेता और जब काम खत्म होने का समय होता, तब भी उन्हें नहीं छोड़ता था।
गाँव के गरीब लोग उससे बहुत परेशान थे, लेकिन उनके पास कोई और रोजगार का साधन नहीं था, इसलिए वे सब कुछ सहने को मजबूर थे।
जब गाँव में शादियों का मौसम आता, तो मगनलाल के घर ढेर सारे निमंत्रण पत्र आते। वह हर शादी में पूरे उत्साह से जाता, खूब पेट भरकर खाना खाता, और बिना कोई उपहार या पैसे दिए चुपचाप वापस लौट आता। उसके लिए तो पैसे ही सबकुछ थे, मानो उनमें उसकी जान बसती हो।
समय बीतता गया और आखिरकार मगनलाल के बेटे की शादी की तारीख तय हुई। मगनलाल ने पूरे गाँव को निमंत्रण भेजा। गाँव वालों के लिए यह एक सुनहरा अवसर था। उन्होंने आपस में सलाह-मशवरा किया और मगनलाल को उसकी करनी का सबक सिखाने का फैसला किया।
शादी वाले दिन पूरा गाँव मगनलाल के घर पहुँचा। बारात धूमधाम से आई और रस्मों-रिवाजों के बाद भोजन का समय हुआ। मगनलाल ने बड़े गर्व से सबको स्वादिष्ट भोजन परोसा। गाँव वाले भी खूब मन लगाकर खा रहे थे, लेकिन उनके चेहरों पर एक अजीब सी शांति थी।
जब विदाई का समय आया, तो मगनलाल और उसके परिवार वाले मेहमानों से उपहार और पैसे की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन गाँव वालों ने वैसा ही किया जैसा मगनलाल हमेशा दूसरों की शादियों में करता था। वे बिना कोई उपहार या पैसे दिए एक-एक करके चुपचाप अपने घरों की ओर चल दिए।
मगनलाल और उसका परिवार यह देखकर हैरान रह गया। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। उन्होंने कुछ लोगों को रोकने की कोशिश भी की, लेकिन सबने अनसुना कर दिया। शादी के घर में सन्नाटा छा गया। मगनलाल का चेहरा गुस्से और अपमान से लाल हो गया।
उस रात मगनलाल को नींद नहीं आई। वह सारी रात इस बारे में सोचता रहा कि गाँव वालों ने उसके साथ ऐसा क्यों किया। धीरे-धीरे उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा।
उसे याद आया कि कैसे उसने हमेशा दूसरों का फायदा उठाया था, कैसे वह मजदूरों पर अत्याचार करता था और शादियों में बिना कुछ दिए सिर्फ खाने जाता था। उसे समझ में आया कि गाँव वालों ने उसे उसी की भाषा में जवाब दिया था।
अगले दिन मगनलाल गाँव के मुखिया के पास गया। उसने अपनी गलती स्वीकार की और गाँव वालों से माफी मांगने की इच्छा जताई। मुखिया और अन्य बुजुर्गों ने उसकी बात सुनी और कहा कि अगर वह सच में पश्चाताप कर रहा है, तो उसे पूरे गाँव के सामने अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए।
मगनलाल ने उनकी बात मानी। उसने गाँव में एक सभा बुलाई और सभी लोगों के सामने अपनी कंजूसी और बुरे व्यवहार के लिए माफी मांगी। उसने वादा किया कि वह अब से कभी किसी का शोषण नहीं करेगा और हमेशा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा।
गाँव वालों ने मगनलाल की ईमानदारी देखकर उसे माफ कर दिया। उन्हें खुशी हुई कि मगनलाल को अपनी गलती का एहसास हो गया था। उस दिन के बाद मगनलाल सच में बदल गया। वह अपने मजदूरों का ध्यान रखने लगा, उन्हें समय पर छुट्टी देता और उचित मजदूरी देता। शादियों में भी वह अब खाली हाथ नहीं जाता था।
इस घटना से गाँव वालों को भी एक बड़ी सीख मिली। उन्होंने जाना कि एकता में कितनी शक्ति होती है और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना कितना जरूरी है।
मगनलाल की कहानी आज भी हरिपुरा गाँव में सुनाई जाती है, जो लोगों को यह याद दिलाती है कि लालच और कंजूसी का हमेशा बुरा अंत होता है और दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना ही जीवन का सही तरीका है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हम अपने लिए चाहते हैं।
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