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उम्मीदों का दबाव | hindi kahani | moral story in hindi | प्रेरणादायक कहानी


अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा एक छोटा सा शहर था - ‘उदयपुरम्’। अपनी शांत झीलों और ऐतिहासिक किलों के लिए जाना जाने वाला यह शहर, आधुनिक शिक्षा के दबाव से अछूता नहीं था। यहाँ भी, बच्चों के कंधों पर परीक्षाओं और अंकों का भारी बोझ लदा हुआ था।

Photo credit : Pixabay.com


इस शहर में रमेश और शोभा अपने इकलौते बेटे, आदित्य के साथ रहते थे। रमेश, एक सरकारी कर्मचारी थे और शोभा, एक कुशल गृहिणी।

 आदित्य, एक शांत और संवेदनशील बालक था, जिसकी रुचि किताबों और प्रकृति में रमती थी। उसे कहानियाँ पढ़ना, कविताएँ लिखना और पेड़-पौधों के बारे में जानना बहुत पसंद था। लेकिन, उसके माता-पिता की महत्वाकांक्षाएँ कुछ और थीं।

रमेश और शोभा, आदित्य को शहर के सबसे प्रतिष्ठित विद्यालय में पढ़ाते थे, जहाँ शिक्षा का स्तर तो ऊँचा था, लेकिन बच्चों पर अंकों और रैंकिंग का दबाव उससे भी कहीं ज़्यादा था। हर परीक्षा के बाद, घर का माहौल तनावपूर्ण हो जाता था।

 आदित्य के अंकों की तुलना उसके सहपाठियों से की जाती, और थोड़ी भी कमी आने पर उसे निराशाजनक बातें सुननी पड़तीं।

“देखो, शर्मा जी का बेटा तो हमेशा अव्वल आता है। तुम्हें भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए,” शोभा अक्सर कहतीं।
“इतनी महँगी फीस भरने का क्या फायदा, जब तुम्हारे नंबर ही अच्छे नहीं आते?” रमेश की यह टिप्पणी आदित्य के कोमल मन पर गहरा आघात करती थी।

आदित्य धीरे-धीरे अपनी रुचियों से दूर होता चला गया। किताबों की जगह उसने गाइड और नोट्स को अपना साथी बना लिया। प्रकृति की सुंदरता अब उसे आकर्षित नहीं करती थी, क्योंकि उसका सारा ध्यान अगली परीक्षा में अच्छे अंक लाने पर केंद्रित हो गया था। वह एक ऐसी दौड़ में शामिल हो गया था, जिसमें उसे यह भी नहीं पता था कि वह क्यों दौड़ रहा है।

विद्यालय में भी माहौल कुछ ऐसा ही था। शिक्षक ज्ञान देने की बजाय पाठ्यक्रम पूरा कराने और छात्रों को परीक्षा के लिए तैयार कराने में अधिक व्यस्त थे। छात्रों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की जगह, एक अघोषित होड़ मची रहती थी - कौन सबसे ज़्यादा अंक लाएगा।

इस दबाव का आदित्य के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने लगा। वह अक्सर गुमसुम रहने लगा, रातों में उसे नींद नहीं आती थी, और एक अजीब सा डर हमेशा उसके मन में बना रहता था। उसे लगता था कि यदि वह अच्छे अंक नहीं ला पाया तो वह अपने माता-पिता की नज़रों में गिर जाएगा।

एक दिन, विद्यालय में अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ। आदित्य के अंक पिछली बार से थोड़े कम थे। घर पहुँचते ही उसे अपने माता-पिता के गुस्से का सामना करना पड़ा।

“यह क्या है आदित्य? इस बार तो और भी कम अंक आए हैं। क्या करते रहते हो तुम दिन भर?” रमेश ने गुस्से से कहा।
शोभा की आँखों में आँसू थे। “हमने तुमसे कितनी उम्मीदें लगाई थीं। अब क्या होगा?”
आदित्य चुपचाप खड़ा रहा। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह एक गहरे कुएँ में गिरता जा रहा हो, जहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं है।

अगले कुछ दिन आदित्य के लिए और भी मुश्किल भरे थे। उसके माता-पिता ने उसका बाहर खेलना बंद करवा दिया और उसे हर समय पढ़ने के लिए मजबूर करते रहे। ट्यूशन क्लासेस की संख्या भी बढ़ा दी गई। आदित्य को लगने लगा कि वह एक मशीन बन गया है, जिसका एकमात्र काम है पढ़ना और अच्छे अंक लाना।

इसी दौरान, आदित्य की मुलाकात अपने एक पुराने मित्र, विक्रम से हुई। विक्रम, जो कभी पढ़ाई में बहुत अच्छा नहीं था, अब एक सफल फोटोग्राफर बन गया था। उसने आदित्य को बताया कि कैसे उसने अपनी रुचि को पहचाना और उसी में अपना करियर बनाया।

विक्रम की बातें सुनकर आदित्य को थोड़ा हौसला मिला। उसे याद आया कि उसे तो तस्वीरें खींचना और नई-नई जगहों पर घूमना कितना पसंद था। लेकिन, अपने माता-पिता के दबाव के कारण उसने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं था।

एक रात, आदित्य ने हिम्मत करके अपने माता-पिता से अपनी भावनाओं के बारे में बात करने का फैसला किया। उसने उन्हें बताया कि उसे पढ़ाई में उतना मन नहीं लगता और वह फोटोग्राफी में अपना भविष्य बनाना चाहता है।

रमेश और शोभा आदित्य की बातें सुनकर हैरान रह गए। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनका बेटा कुछ और करना चाहता है। उन्हें लगा कि आदित्य पढ़ाई से बचने के लिए बहाने बना रहा है।

“यह सब बकवास है आदित्य। फोटोग्राफी में क्या रखा है? उसमें कोई भविष्य नहीं है,” रमेश ने सख्ती से कहा।
“लेकिन पिताजी, मुझे यही अच्छा लगता है। मैं इसमें मेहनत कर सकता हूँ और सफल हो सकता हूँ,” आदित्य ने अपनी बात रखने की कोशिश की।
“चुप रहो! तुम्हें सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना है। हमने तुम्हें अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए इतना खर्च किया है, और तुम ऐसी बातें कर रहे हो?” शोभा ने गुस्से में कहा।

आदित्य निराश हो गया। उसे लगा कि उसके माता-पिता उसकी भावनाओं को कभी नहीं समझेंगे। वह फिर से अकेला और असहाय महसूस करने लगा।

परीक्षा का समय नजदीक आ रहा था, और आदित्य पर दबाव बढ़ता जा रहा था। एक रात, जब वह अपनी बालकनी में खड़ा था, तो उसके मन में एक भयानक विचार आया। उसे लगा कि यदि वह परीक्षा में फेल हो गया तो उसके माता-पिता का सामना कैसे करेगा। उसे लगा कि उसके जीने का कोई मतलब नहीं है।

उसी पल, उसकी नज़र नीचे खेल रहे कुछ छोटे बच्चों पर पड़ी। वे बिना किसी चिंता के हंस रहे थे और खेल रहे थे। उन्हें देखकर आदित्य को अचानक एहसास हुआ कि जीवन सिर्फ परीक्षा और अंकों से कहीं बढ़कर है।

अगले दिन, आदित्य ने एक साहसिक कदम उठाया। उसने अपने माता-पिता को एक पत्र लिखा, जिसमें उसने अपनी भावनाओं को विस्तार से व्यक्त किया और उनसे अपनी रुचि को समझने और समर्थन करने का अनुरोध किया।

जब रमेश और शोभा ने आदित्य का पत्र पढ़ा, तो उन्हें गहरा सदमा लगा। उन्हें पहली बार एहसास हुआ कि उन्होंने अपने बेटे पर कितना दबाव डाला है और उसकी भावनाओं को कितना नज़रअंदाज़ किया है।

उसी दिन, रमेश और शोभा ने आदित्य से बात की। उन्होंने उसे बताया कि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है और वे हमेशा उसके साथ हैं, चाहे उसके अंक कैसे भी आएं। उन्होंने यह भी वादा किया कि वे उसकी रुचि को समझने और उसका समर्थन करने की पूरी कोशिश करेंगे।

आदित्य को अपने माता-पिता के मुँह से ये बातें सुनकर बहुत सुकून मिला। उसे लगा जैसे उसके सिर से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो।

परीक्षाएँ हुईं, और आदित्य ने अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन किया। इस बार उसे अंकों की चिंता नहीं थी, बल्कि इस बात की खुशी थी कि उसके माता-पिता अब उसकी भावनाओं को समझते हैं।

परीक्षा के परिणाम आए, और आदित्य के अंक औसत थे। लेकिन, इस बार घर का माहौल खुशनुमा था। रमेश और शोभा ने आदित्य को गले लगाया और उसकी मेहनत की सराहना की।

उन्होंने आदित्य को एक अच्छा कैमरा दिलाया और उसे फोटोग्राफी सीखने के लिए एक कोर्स में दाखिला दिलाया। आदित्य ने पूरे मन से अपनी रुचि का पीछा किया और धीरे-धीरे एक कुशल फोटोग्राफर बन गया।

कुछ सालों बाद, आदित्य एक सफल वन्यजीव फोटोग्राफर के रूप में जाना जाने लगा। उसकी तस्वीरें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में छपती थीं, और उसे कई पुरस्कार भी मिले।

एक दिन, आदित्य ने अपने माता-पिता से कहा, “अगर आपने उस दिन मेरी रुचि को समझा न होता, तो शायद आज मैं यहाँ नहीं होता। आपने मुझे अंकों के बोझ से मुक्त करके जीवन का सही अर्थ सिखाया।”

रमेश और शोभा ने मुस्कुराकर अपने बेटे को गले लगा लिया। उन्हें गर्व था कि उन्होंने अपने बेटे की खुशी और उसकी प्रतिभा को अंकों से ज़्यादा महत्व दिया।

इस कहानी से यही सीख मिलती है कि बच्चों पर अंकों का अनावश्यक दबाव डालना उनके मानसिक स्वास्थ्य और विकास के लिए हानिकारक हो सकता है। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों की रुचियों और योग्यताओं को पहचानें और उन्हें अपनी पसंद के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। 

परीक्षाएँ जीवन का एक हिस्सा हैं, लेकिन यह जीवन नहीं हैं। बच्चों को यह विश्वास दिलाना ज़रूरी है कि उनका परिवार हमेशा उनके साथ है, उनकी मार्कशीट के साथ नहीं, बल्कि उनके व्यक्तित्व और उनकी खुशियों के साथ। तभी बच्चे बिना किसी डर के अपनी राह चुन सकेंगे और जीवन में सफल हो सकेंगे।

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